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संदेश

रेशमा

रोज की तरह आज भी घर के सारे काम जल्दी- जल्दी समाप्त करके मै ऑफिस के लिए निकली। बेटा अपने स्कूल जा चुका था। मेरे पति भी पहले ही अपने ऑफिस के लिए निकल चुके थे। आज मेरा ड्राइवर भी छुट्टी पर था, इसलिए गाड़ी खुद ही ले कर जाना पड़ा। आज भी रास्ते में रोज की ही तरह से ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। सुबह सुबह सब अपनी अपनी जल्दी में होते हैं, किसी को ऑफिस, किसी को स्कूल - कॉलेज, मै भी ऑफिस जाने की जल्दी मे थी इंतजार कर रही थी कि जल्दी से रास्ता खाली हो और मैं समय से अपने ऑफिस पहुंच पाऊं। तभी अचानक मेरी नजर रोड के दूसरी तरफ चली गई जहां मैंने 24- 25 साल की एक युवती को बैठे देखा। वह युवती चेहरे से बहुत दुखी और परेशान सी लग रही थी। उसके साथ एक छोटी बच्ची भी थी, जिसकी उम्र लगभग 3 से 4 वर्ष रही होगी। वह युवती उस बच्ची को केले खिला रही थी। देखने से वह किसी अच्छे घर की लग रही थी। उसने आसमानी रंग की साड़ी पहन रखी थी। उस युवती का उस तरह से वहां पर बैठना मुझे कुछ तो अजीब सा लग रहा था। मैं उसको देखे जा रही थी, तभी जाने का संकेत मिला और मैं अपने रास्ते चली गई। पता नहीं क्यों लेकिन मुझे बार-बार यही लग रहा था कि जैसे...

सपना

 आज हमने एक पवित्र आत्मा को देखा,                                 उससे मिलकर लगा, उसके रूप में परमात्मा             ‌                                को देखा। ना बंगला, ना बड़ी गाड़ी, ना ढेर सारा पैसा,                                         पर था वो बिल्कुल फरिश्ते जैसा। ना थी फिक्र जिसे समाज और अपनी खुशियों की,                     उसे थी फिक्र सिर्फ उस औरत की खुशियों                                                         की। हालात और समाज ने, ला खड़ा किया था जिसे सड़क    ...

छुपा हुआ दर्द

 यह शहर यहां के लोग और यह होटल जहां अकेले बैठ कर पूजा कॉफी पी रही थी सब उसके लिए अनजान थे। यहां पर वह किसी को नहीं जानती थी, क्योंकि पहली बार उसका इस शहर में आना हुआ था। लेकिन इन अनजान लोगों के बीच में एक जानी पहचानी आवाज पूजा को बार बार सुनाई देती, पूजा हर बार पलट कर इधर उधर देखती लेकिन उसकी कुछ समझ में नहीं आता कि आवाज किसकी थी। अपनी कॉफी ख़तम करने के बाद पूजा थोड़ी देर उसी जगह चुपचाप बैठ कर कुछ सोचती रही फिर वहां से उठ कर होटल के मैनेजर से कुछ बात की। मैनेजर से बात करने के बाद जैसे ही पूजा बाहर जाने के लिए पीछे मुड़ी , उसे फिर से वही आवाज सुनाई उसने देखा सामने प्रीती बैठी थी। पूजा कुछ बोलती उसके पहले ही प्रीती ने कहा पूजा... कैसी हो और यहां कैसे? पूजा और प्रीती एक साथ हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करती थी, दोनों एक दूसरे को जानती थी लेकिन दोनों में कोई ज्यादा अच्छी दोस्ती नहीं थी। इसलिए हॉस्टल छोड़ने के बाद दोनों कई सालों के बाद मिल रही थी।                                          ...

हमने देखा

 पल भर में हमने किस्मत को बदलते देखा।    कल तक खुशियों से आबाद                                        थी जिसकी दुनिया, आज उसकी दुनियां को हमने उजड़ते देखा।        पल भर में हमने किस्मत को                                       बदलते देखा।।            कल तक जो सुहागन थी,                                                                       उसकी मांग का सिंदूर                                  हमने बिखरते देखा।   पल भर में हमने किस्मत को बदलते देखा।। ...

वक्त

कहते हैं कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता बदलता रहता है, कभी अच्छा तो कभी बुरा वक्त सबका आता है। ऐसे ही हुआ था मि. सिंह के साथ जो बुरे वक्त की मार झेल रहे थे। मि. सिंह का दर्द किसी से छुपा हुआ नहीं था। मि. सिंह जो कभी एक बड़ी जायदाद और बड़ी हवेली के मालिक हुआ करते थे, आज अपनी 75 वर्षीय बूढ़ी मां के साथ किराए के घर में रहने को मजबूर थे। ये उनका बुरा वक्त ही तो था कि जो खुद कभी दूसरों का न्याय किया करते थे आज वो खुद न्याय के लिए दर बदर भटक रहे थे। आज सुबह ही मि. सिंह के पड़ोसी और मित्र शर्मा जी ने उनसे कहा था कि अपनी नई जिलाधिकारी जी बहुत दयालु और न्यायप्रिय है एक बार उनके पास जाकर मिल लो वो आपकी मदद जरूर करेंगी। शर्मा जी की बात मानकर न्याय की आस लगाए मि. सिंह जिलाधिकारी जी से मिलने के लिए घर से निकले.... आज भी वो दिन कोई नहीं भूला होगा जब मि. सिंह के घर बेटे का जन्म हुआ था। उनकी हवेली में खुशियां ही खुशियां थी, इस अवसर पर उन्होंने बहुत बड़ी दावत दी थी, गरीबों को बहुत सा दान भी दिया था, और अपनी खुशी और प्यार जाहिर करने के लिए उपहार स्वरूप अपनी आधी जायदाद अपने बेटे के नाम पर कर दी। मि. सिं...

नारी शक्ति

सफर (किराये के घर से बृद्धाश्रम तक)

                                                                                      बृद्धाश्रम  का वो कमरा जिसमें 8-10 बेड पड़े हुए थे, हर बेड के पास कुछ समान भी रखा हुआ था और कुछ बुजुर्ग महिलाएं आपस में बात करते हुए एक दूसरे का  दुख सुख बांटने की कोशिश कर रही थी। बृद्धाश्रम जहां पर सब एक ही जैसे तो थे सब को उनके अपनों ने ही धोखा दिया था। उसी कमरे के एक कोने में बेड पर अकेली बैठी वो अपने अतीत की यादों में खोई हुई थी। कमरे की खिड़की से बाहर झांकती उसकी आंखें, जो उम्र के असर से नहीं बल्कि हालातों की मार और जीवन के सफ़र की थकावट की वजह से समय से पहले बूढ़ी हो गई थी, अपने अतीत को याद करके उसकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। तभी राधिका जी ने पीछे से आकर कहा घर की याद आ रही है सीमा? अपने आंसू पोंछते हुए सीमा ने कहा नहीं.... नही तो.... राधिका जी सीमा से उम्र में बड़ी थी लेकि...