आज हमने एक पवित्र आत्मा को देखा, उससे मिलकर लगा, उसके रूप में परमात्मा को देखा।
ना बंगला, ना बड़ी गाड़ी, ना ढेर सारा पैसा, पर था वो बिल्कुल फरिश्ते जैसा।
ना थी फिक्र जिसे समाज और अपनी खुशियों की, उसे थी फिक्र सिर्फ उस औरत की खुशियों की।
हालात और समाज ने, ला खड़ा किया था जिसे सड़क की गन्दगी में, खुशियां भर दी उसने, उस अबला की जिंदगी में।
अपनाया उसने उस विधवा और उसके बच्चे को, दिल को बड़ा सुकून मिला, देखकर ऐसे इंसान अच्छे को।
कल तक नहीं था जिसका कोई ठिकाना, खुुुशियां ढूंढ़ती है आज, उसके घर जाने का बहाना।
बदल दी जिसने उसकी जिंदगी, दिल चाहा झुकूं और कर लूं उसकी बंदगी।
आंख खुली तो यह एक सपना था, वह भी सड़क पर थी नहीं कोई उसका अपना था। जो भी था मन को बहुत अच्छा लगा, इस स्वार्थी दुनियां में, सपने में ही सही कोई तो सच्चा मिला ।
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