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सफर (किराये के घर से बृद्धाश्रम तक)


                                                                                     बृद्धाश्रम  का वो कमरा जिसमें 8-10 बेड पड़े हुए थे, हर बेड के पास कुछ समान भी रखा हुआ था और कुछ बुजुर्ग महिलाएं आपस में बात करते हुए एक दूसरे का  दुख सुख बांटने की कोशिश कर रही थी। बृद्धाश्रम जहां पर सब एक ही जैसे तो थे सब को उनके अपनों ने ही धोखा दिया था। उसी कमरे के एक कोने में बेड पर अकेली बैठी वो अपने अतीत की यादों में खोई हुई थी। कमरे की खिड़की से बाहर झांकती उसकी आंखें, जो उम्र के असर से नहीं बल्कि हालातों की मार और जीवन के सफ़र की थकावट की वजह से समय से पहले बूढ़ी हो गई थी, अपने अतीत को याद करके उसकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। तभी राधिका जी ने पीछे से आकर कहा घर की याद आ रही है सीमा? अपने आंसू पोंछते हुए सीमा ने कहा नहीं.... नही तो.... राधिका जी सीमा से उम्र में बड़ी थी लेकिन वह भी उसी की तरह अपनों की सताई हुई थी। एक बड़ी बहन की तरह सीमा का हांथ अपने हांथ में थामकर राधिका जी ने कहा जो भी तुम्हारे मन में है बोल दो तुम्हारा मन हल्का हो जाएगा। यहां सब लोग एक जैसे ही तो हैं सबको उनके अपनों ने ही धोखा दिया है । सीमा की आंखो से आंसू निकलने लगे , एक पल में उसे उसका सारा अतीत याद आ गया... कितना लंबा सफ़र तय किया था उसने, इस कड़वाहट भरी जिंदगी में उसे हर कदम पर धोखा और तिरस्कार ही तो मिला था, वो मनहूश दिन वो कैसे भूल सकती थी जब एक दिन बाजार से वापस आते समय एक कार की टक्कर से उसकी मां की मौत हो गई थी। अभी सीमा मात्र आठ साल की थी सीमा की तो दुनिया ही उजड़ गई थी, लेकिन उससे बड़ा झटका उसे तब लगा जब उसे पता चला कि जिस घर में वो अब तक रह रही थी वो घर उसका नहीं है। सीमा की मां उस घर में नौकरानी थी, उनका अपना कोई घर नहीं था, इसलिए मकान मालिक ने उन्हें अपने घर पर ही एक कमरा किराए पर दे दिया था। उनके घर पर सब लोग बहुत अच्छे थे इसलिए सीमा को कभी पता नहीं चला कि जिस घर में वह रहती है वो उसका अपना घर नहीं है।                                                         सीमा की मां के जाने के बाद भी घरवालों ने सीमा को घर से बाहर नहीं निकाला, उन लोगों ने सीमा का बहुत अच्छे से ध्यान रखा था। लेकिन कोई कितना भी प्यार करे फिर भी वह मां की जगह नहीं ले सकता था। सीमा सबके साथ उनके घर पर ही रहती थी और घर के छोटे मोटे काम भी कर लेती थी। इसी तरह धीरे धीरे समय बीतता चला गया और सीमा की जिम्मेारियां भी बढ़ती गई अब वह घर का काम और भी जिम्मेदारी से कर लेती थी। सीमा अब बारह वर्ष की हो गई थी, एक दिन एक चूड़ीवाली मोहल्ले में आयी उसने सीमा को देखा सीमा उसे बहुत पसंद आई, उसने सीमा के मकान मालिक से बात की और सीमा को अपने साथ ले जाने के लिए कहा, चूड़ीवाली बहुत दिनों से मोहल्ले में आती थी इसलिए सब लोग उसे अच्छी तरह से जानते थे, वो एक बहुत अच्छी महिला थी इसलिए घरवालों ने सीमा को उसके साथ भेज दिया।                                    चूड़ीवाली सीमा को अपने साथ घर ले आयी लेकिन उसने सीमा को नौकरानी की तरह नहीं बल्कि अपनी बेटी की तरह घर पर रखा। नई जगह सीमा को थोड़ी सी परेशानी तो हुई फिर भी वह ठीक ही थी क्योंकि उसके लिए तो दोनों घर एक जैसे ही थे ना यहां कोई अपना था और ना ही वहां पर... धीरे धीरे सीमा चूड़ीवाली के साथ घुल मिल गई चूड़ीवाली सीमा को बहुत प्यार करती थी, उसके प्यार ने सीमा की मां की कमी को पूरा कर दिया। साथ रहते हुए कई वर्ष बीत गए थे चूड़ीवाली का एक बेटा था जो किसी रिश्तेदार के घर पर रहकर पढ़ाई करता था अब वह भी वापस आ गया था। इसलिए चूड़ीवाली ने सीमा के साथ अपने बेटे का विवाह कर लिया, सीमा बहुत खुश थी वह अपनी सास को मां की तरह ही प्यार करती और उनका ध्यान रखती । अपने घर को बड़े प्यार से सजाती संवारती आखिर ये उसका घर था, जिसका सपना वो देखा करती थी। सीमा की खुशियों को चार चांद उस समय लग गए जब उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया, उसका पूरा दिन बेटे की देखभाल करने और घर को सजाने संवारने घर की जिम्मदारियों में ही बीत जाता था । अब उसके पास कोई कमी नहीं थी.... घर , मां ,पति और बेटा सब कुछ तो था उसके पास। लेकिन समय हमेशा एक ही जैसा नहीं रहता एक दिन सीमा की सास का स्वर्गवास हो गया, सीमा को बहुत दुख हुआ उसे लगा जैसे उसने एक बार फिर से अपनी मां को खो दिया है, लेकिन इस बार वह इस दुख में अकेली नहीं थी उसके पति और बेटा उसके साथ थे। सीमा की सास के जाने के बाद ही उसके पति का व्यवहार सीमा की प्रति बदलने लगा पहले तो सीमा को लगा शायद मां के जाने के दुख की वजह से ये है लेकिन उनका व्यवहार दिन प्रति दिन खराब ही होता चला गया, उसने सीमा को मारना पीटना भी सुरु कर दिया और फिर एक उसने सीमा से कहा कि मै तुमको कभी पसंद नहीं करता था, बस मां के डर की वजह से तुमसे शादी की थी अब मां नहीं तो फिर यह रिश्ता भी नहीं मै किसी और को पसंद करता हूं उसी के साथ शादी करूंगा तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नही है इसलिए इस घर से निकल जाओ मै भी इस घर को बेचकर शहर में जाकर रहूंगा।                                                     कहां जाती और किससे मदद मांगती कोई उसका अपना था भी तो नहीं इसलिए अपने तीन साल के बेटे को लेकर घर से बाहर निकल गई । उसकी मदद गांव के लोगों ने की ग्राम प्रधान ने गांव में ही थोड़ी सी जमीन सीमा को दे दी जिस पर गांव वालो की मदद और प्रधान जी के सहयोग से सीमा अपने रहने भर की व्यवस्था कर ली। सीमा को घर तो मिल गया था लेकिन बेटे की परवरिश और अपनी रोज की जरूरतें पूरी करने के लिए उसे पैसों की जरूरत थी इसलिए उसने मजदूरी करना सुरु कर दिया, सीमा बिल्कुल भी पढ़ी लिखी नही थी इसलिए मजदूरी से ज्यादा उसे और कोई काम मिल भी नहीं सकता था। अपना सारा दुख दर्द अपने अंदर समेटे सीमा अपने बेटे के साथ खुश रहने की कोशिश करती थी, अपनी क्षमता के अनुसार वह अपने बच्चे की सारी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करती थी, समय बीता और सीमा का बेटा थोड़ा और बड़ा हो गया, सीमा ने उसको स्कूल भी भेजना सुरु कर दिया। जैसे जैसे वक्त बीतता गया सीमा की स्थिति अच्छी होती गई उसने अपने घर को अच्छे से सजा संवार लिया था जरूरत का सारा सामान भी था उसके पास, उसका बेटा भी बड़ा हो गया था थोड़ा बहुत कमाने भी लगा था इसलिए सीमा ने गांव में ही थोड़ी सी जमीन भी खरीद ली थी। सीमा अपना अतीत भूली तो नहीं थी लेकिन काफी हद तक उससे दूर हो गई थी। अब सीमा को अपने घर में सुकून की नींद तो आती थी ये सोचकर कि अब उसे इस घर से कोई बाहर नहीं निकालेगा आखिर यह घर उसने खुद बनाया है । अब सब कुछ तो था बस बेटे के लिए एक अच्छी सी बहू ले कर आना यही एक सपना बचा था सीमा का।                                                           एक दिन सीमा के बेटे के लिए एक रिश्ता आया सब कुछ अच्छा था लड़की भी सीमा और उसके बेटे को पसंद आ गई, सीमा ने अपने बेटे की शादी बहुत धूमधाम से की। आज सीमा का सपना भी पूरा हो गया बेटे की शादी का, बहू घर आ गई सीमा का घर आंगन खुशियों से भर गया। सीमा अपनी बहू को बेटी की तरह ही प्यार करती थी, कभी कोई रोकटोक नहीं की, कोई पाबंदी नहीं लगाई, कुछ दिन तक सब कुछ ठीक चलता रहा लेकिन कुछ दिन बाद बेटे और बहू को सीमा के साथ रहने में परेशानी होने लगी घर में झगड़े होने लगे, एक बार फिर सीमा की खुशियों को ग्रहण लग चुका था। आखिर बातें इतनी ज्यादा बढ़ गई कि एक दिन सीमा के बेटे और बहू ने कहा कि हम आपका खर्च नहीं उठा सकते इसलिए आप अलग जाकर कहीं रहिए। जिस बेटे को सीमा ने मजदूरी करके पाल पोस कर इतना बड़ा किया था ना जाने कितने ही दर्द और परेशानियां झेली थी उस बेटे के मुंह से ऐसी बात सुनकर सीमा को बहुत बड़ा झटका लगा फिर भी उसने कहा कि कोई बात नही बेटा मै कहीं भी मजदूरी करके अपने लिए खाने की व्यवस्था कर लूंगी तुम परेशान ना हो, फिर सीमा ने गांव में ही किसी के घर झाड़ू बर्तन करना सुरु कर दिया लेकिन बेटे बहू को ये भी मंजूर नहीं हुआ, आखिर एक दिन उन लोगों ने सीमा से कहा कि आप के लिए इस घर में कोई जगह नही आप अलग कहीं अपने लिए व्यवस्था कर लीजिए कि इस उम्र में सीमा अपने लिए अलग व्यवस्था कहां से करती आखिर में तो एक जगह बचती थी जहां वह इस समय थी वृद्धाश्रम  ...।                                                    सीमा का हांथ थाम कर रंजीता जी ने कहा घर की याद मत करो सीमा क्योंकि वह हमारा घर नहीं था। इसलिए तो उस घर में हमारे लिए कोई जगह नही थी, तभी तो हमको उस घर से निकाल दिया गया, लेकिन सीमा अब कोई परेशानी नहीं है अब यही अपना घर है, यही अपना परिवार है, जब तक हम जिंदा है तब तक हमको इस घर से कोई भी नहीं निकालेगा, दोनों एक दूसरे का हांथ थामे थी दोनों की आंखों से आंसू निकल रहे थे। आखिर वहां सब लोग एक ही दर्द के मारे थे राधिका जी ने कहा चलो सीमा खाना खा लेते हैं, दोनों कमरे से बाहर निकल कर चली गई, लेकिन यह सवाल आज भी वहीं था, आखिर उसका घर कहां था... जबाब भी शायद यही था... वृद्धाश्रम .......उसकी जिंदगी का सफर किराए के घर से वृद्धाश्रम तक.....।।



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