देखी जो उसकी पथराई आंखे,
उसके दर्द से भर आई मेरी भी आंखें ।
कितना दर्द था उसकी आँखों में,
नहीं हो सकता है बयां मेरी बातों से।
इस हाल में छोड़ गए जिसके अपने,
मर चुके हैं अब तो उसके सारे सपने,
अब तो आंसू भी नहीं निकलते उसकी आंखों से, ऐसा लगता है कि वो नहीं सोई कई रातों से ।
उसकी कहानी लिखते हुए,
मेरी कलम को भी रोना आता है,
कोई इंसान इतना स्वार्थी और निर्दयी,
कैसे हो जाता है । किसी के दिमाग की गन्दगी ने ,
जहर घोल दिया उसकी जिंदगी में ।
शिकार बनी वो एक दरिंदे की,
पड़ी रहती है वो पर कटे परिंदे सी ।
मिल जाए न्याय तो शायद शांति आए,
बेहतरीन
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