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दहेज प्रथा


 
मां के आंचल की कली,

ममता की छांव में पली।

सपनो के आंगन में,

पापा की उंगली पकड़ कर चली।

भाई के संग खेली ,

बहन की सच्ची सहेली।

आंखों में सपने दिल में अरमान लिए,

जाने कितनी जल्दी बड़ी हुई।

माता पिता की जान थी जो घर आंगन की शान थी वो,

डोली में बैठ आज विदा हो चली।

बनी वो रौनक किसी और के घर आंगन में,

किया समर्पण तन और मन से।

कुछ दिन ससुराल में बड़े प्यार से रही जो,

बाद में  मार और ताने सही वो।

नहीं मिला चैन इतने से भी उन दरिंदों को,

आखिर एक दिन दहेज की आग में जली वो।

रोता छोड़ चली परिवार और सहेली ,

बन गई उसकी जिंदगी एक पहेली।

खोया एक मां बाप ने अपने जिगर का टुकड़ा,

लेट कर अर्थी पर दुनिया से चली वो।

क्यों नहीं मिटती ये दहेज प्रथा,

जो है हर लड़की की व्यथा।

यही है समाज का सच ,

ना समझना इसको कथा।।



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