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अनोखा प्यार

                    


ऑफिस बन्द हो गया था सब अपने - अपने घर जाने की जल्दी में आपस में बातें करते हुए बाहर निकल रहे थे, इस भीड़ में शांत सी दिखती शिया बाहर निकली, उसके चेहरे को देख कर साफ़ पता चल रहा था कि वो अपने मन में दुखों का कितना बड़ा समंदर समेटे हुए थी । अभी वो बाहर निकली ही थी कि, किसी की आवाज आई शिया ..वो चौंक कर पीछे मुड़ी सामने राघव खड़ा था , राघव और शिया कॉलेज में साथ पढ़ते थे, पांच दोस्तों का ग्रुप था उनका, कॉलेज ख़तम होने के बाद आज उन लोगों की मुलाकात हुई थी। थोड़ी सी बातें करने के बाद राघव ने कहा चलो घर चलते है में तुम्हे घर छोंड़ देता हूं।                                 राघव भी उस तरफ ही जा रहा था। रास्ते में राघव ने कई बार शिया से पूछा कि सब ठीक तो है ना क्योंकि शिया को देखकर उसे लग रहा कि वो बहुत परेशान है , जो लड़की हर समय बोलती रहती थी कितना खुशमिजाज थी वो आज बिल्कुल चुप थी, लेकिन हर बार शिया ने सब ठीक है कहकर उसकी बात टाल दी। घर पहुंचने पर राघव ने कहा चाय नहीं पिलाओगी क्या, तो शिया ने कहा हां क्यों नहीं आ जाओ। शायद राघव ने चाय की बात इसलिए की थी क्योंकि उसको पता था कि शिया किसी ना किसी परेशानी में जरूर है और वो जानना चाहता था कि क्या बात है इसलिए वो शिया के घर चला गया । शिया ने उसे बैठने का इशारा किया और किचन में चली गई जब वापस आयी तो राघव ने वहां रखी हुई एक तस्वीर की तरफ इशारा करते हुए पूछा शिया ये किसकी तस्वीर है, ये बच्चा कौन है , इस बार शिया झूठ नहीं बोल पाई राघव के इस सवाल पर वह रोने लगी फिर खुद को संभालते हुए उसने कहा मेरा बेटा है हर्ष , उसके बाद शिया ने वो सब कुछ राघव को बताया जो उसकी शादी से लेकर अब तक उसके साथ हुआ था।                                                        क्या-क्या नहीं हुआ था उसके साथ, उफ्फ! कितने दर्द से गुजरी थी इस तीन साल की शादी में वो, कितनी रातें जागते हुए और कितने ही दिन रोते हुए बीते उसके, और अब उसके दुधमुंहे बच्चे को भी उससे छीन लिया गया था, जो अभी सिर्फ पांच महीने का था, उसे जबरदस्ती तलाक देकर घर से बाहर निकाल दिया गया था, उसने कितने हांथ जोड़े थे उनलोग के सामने कितनी मिन्नते की थी कि उसका बच्चा उसे दे दिया जाए लेकिन किसी ने उसकी एक भी नहीं सुनी। तब से लेकर अब तक वो कोर्ट के चक्कर लगा रही थी अपने बच्चे को पाने के लिए। तीन महीने बीत गए थे इसी तरह, और फिर आज उसके वकील ने कहा कि हम केस जरूर जीत जाएंगे फैसला हमारे पक्ष मे ही आएगा, लेकिन हमारी लड़ाई बहुत पैसे वाले लोगों के साथ है, उनके पास बड़ा परिवार भी है, इसलिए वो लोग बच्चे की परवरिश ज्यादा अच्छी तरह से कर सकते है, इसलिए यही डर लग रहा है कि कहीं अपना पक्ष कमजोर न हो जाए। वकील की बात सुनकर शिया को बड़ा झटका लगा, वह बहुत ज्यादा डर गई थी, जबकी वह जानती थी कि वकील की बात का कोई मतलब नही, और उसका डर भी बेबुनियाद है फिर भी वह अपने बच्चे को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी। आखिर एक मां अपने बच्चे को किसी को कैसे दे सकती है।                                                    ये सब कुछ राघव चुप चाप सुनता रहा, शिया रो रही थी, राघव ने उसे समझाने और चुप कराने की कोशिश करते हुए कहा कि सब ठीक हो जायेगा शिया, तुम्हारा बेटा तुम्हे जरूर मिलेगा आखिर तुम उसकी मां हो, इसलिए उस पर सबसे पहला अधिकार तुम्हारा है उसे तुमसे कोई कैसे छीन सकता है। लेकिन जब शिया ने राघव को आज वकील से हुई बात बताई तो वह भी थोड़ी देर चुप हो गया, फिर बोला अगर ऐसी बात है तो तुम शादी कर लो फिर तुम्हारा डर भी खत्म हो जाएगा और तुम्हारे पास परिवार भी हो जाएगा, तब तो आसानी से हर्ष तुम्हे मिल जाएगा।                                                      शिया ने कहा नहीं राघव मैं शादी नहीं कर सकती, मुझे किसी की जरूरत भी नहीं है बस मेरा बेटा मुझे मिल जाए और कुछ नहीं चाहिए, वैसे भी जो कुछ भी मैंने इतने दिनों में सहा है उसके बाद मै किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकती, राघव शिया की मानसिक स्थिति को समझ रहा था इसलिए उसने शिया को समझते हुए कहा कि, अगर ऐसी बात है तो तुम किसी से शादी कर लो और ये तय कर लो की जैसे ही तुम्हारा बेटा तुम्हे मिल जाएगा तुम उससे तलाक ले लोगी, ये शादी सिर्फ नाम के लिए और बेटे को पाने के लिए ही करनी है तुम्हे, शिया ने कहा कि कोई मुझसे इस तरह क्यों शादी करेगा मै तो यहां किसी जानती भी नहीं हूं और मै किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकती हूं, राघव ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो फिर तुम मेरे साथ शादी कर लो तुम मुझे जानती भी हो और हर्ष के वापस आ जाने के बाद मै तुमको तलाक दे दूंगा तुम अपने बेटे के साथ अपने घर वापस चली जाना। राघव ने कहा देखो शिया मै तुम्हारा दोस्त हूं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं , तुम हमको अच्छी तरह से जानती भी हो इतना भरोसा तो तुम मुझ पर कर सकती हो। शिया ने राघव की बात का कोई जवाब नही दिया बस इतना कहा की कल बात करते हैं, राघव चला गया।                                       शिया राघव की बात को रात भर सोचती रही, आखिर उसके पास और कोई रास्ता भी तो नहीं था इसलिए अगले दिन शिया राघव से मिली और उससे कहा कि शायद तुम ठीक कह रहे थे राघव, अपने बच्चे को पाने के लिए मुझे तुम्हारी बात मान लेनी चाहिए। हम दोनों शादी कर लेते हैं, राघव ने कहा ठीक है। अगले दिन ही दोनों ने कोर्ट में जाकर शादी कर ली। शिया की तसल्ली और उसके डर को दूर करने के लिए राघव ने एक एग्रीमेंट दे दिया जिसमे लिखा था कि हमारे बीच पति पत्नी जैसा कोई रिश्ता नहीं रहेगा, हम केवल समाज की नजरो में पति पत्नी रहेंगे, जब शिया का बेटा शिया को वापस मिल जाएगा उसके बाद हम एक दूसरे को बिना किसी शर्त के तलाक दे देंगे ।                                               शादी  के बाद शिया राघव के साथ उसके घर में ही रहने लगी, अब जब कोर्ट जाना होता तो दोनों साथ ही जाते, आफिस घर और कोर्ट बस इसी में दोनों व्यस्त थे। शिया को दिन रात अपने बच्चे की ही चिंता लगी रहती थी। राघव हमेशा कोशिश करता था कि शिया को कोई भी परेशानी ना हो, राघव घर के कामों में भी शिया का हांथ बंटाता था, छुट्टी के दिन राघव खुद नाश्ता भी बना लेता था। एक दिन खाने कि टेबल पर बातें करते हुए राघव ने कहा कि शिया क्या सोचा है तुमने आगे के लिए...शिया ने कहा कि बस अपने बच्चे के साथ रहना है और उसे ढेर सारा प्यार देना है, उसकी हर जरूरत को पूरा करना है उसको कभी भी ये कमी महसूस नहीं होने देना है कि उसके साथ उसके पापा और परिवार नहीं है। एक अच्छी मां बनने की पूरी कोशिश करनी है बस। तुम बताओ तुमने आगे के लिए क्या सोचा है राघव... राघव बोला कुछ नहीं बस जो जैसे है वैसे ही चलता रहेगा।                                                     जिंदगी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी और समय उससे भी अधिक तेजी से बीत रहा था, दोनों को एक साथ रहते हुए छह महीने बीत चुके थे आखिर एक दिन कोर्ट का फैसला आया जिसका इंतजार राघव और शिया इतने दिनों से कर रहे थे, जिसने शिया की जिंदगी को खुशियों से भर दिया, शिया का बेटा उसे वापस मिल गया। आज राघव और शिया बहुत खुश थे, शिया ने ऑफिस से एक महीने की छुट्टी ले ली थी ताकी वह अपने बेटे के साथ समय बिता सके। राघव ने भी पंद्रह दिन की छुट्टी ले ली थी हर्ष के साथ रहने के लिए। राघव ने शिया से कहा शिया कुछ दिन और यहां रुक जाओ मैं भी कुछ समय हर्ष के साथ बिताना चाहता हूं। राघव कि इस बात पर शिया उसे मना नहीं कर पाई और कुछ दिन के लिए वहीं रुक गई। राघव दिन भर हर्ष के साथ उसके आस पास रहता था उसकी हर छोटी बड़ी जरूरत का ध्यान रखता था दिन भर उसके साथ खेलता था और कभी कभी तो रात को भी उसे अपने पास सुलाने के लिए कहता था। देखते देखते 15 दिन बीत गए, शिया के वापस जाने के से पहले की वो रात... उन दोनों को नींद नहीं आई राघव ने कहा कि कल हर्ष चला जाएगा शायद इस डर से नींद नहीं आ रही दोनों देर रात तक बातें करते रहे ।                                            अगले दिन सुबह तलाक के पेपर पर साइन करके शिया हर्ष के साथ अपने घर चली गई। उस दिन के बाद राघव से शिया की बात अक्सर फोन से हो जाती थी, कभी भी बहुत ज्यादा बात नहीं होती थी, लेकिन जब भी कभी बात होती थी तो शिया राघव से ये पूछना चाहती थी कि क्या उसने अपनी शादी के बारे  में कुछ सोचा, लेकिन एक अनजाने डर की वजह से वह यह कभी पूछ नहीं पाई। समय बीतता गया इसी तरह तीन वर्ष बीत गए। हर्ष भी अब चार साल का हो गया था लेकिन उसको आज तक ये नहीं पता था कि उसके पापा कौन है, शिया ने सोचा था कि जब हर्ष थोड़ा समझदार हो जाएगा तब उसको सब कुछ बता देगी। लेकिन कभी कभी वो ये भी सोचती थी कि जिस दिन हर्ष का स्कूल में एडमिशन होगा उस दिन उसके पापा का नाम क्या लिखा जाएगा, क्योंकि हर्ष के पापा का नाम वह हर्ष के साथ नहीं जोड़ना चाहती थी और राघव का नाम भी नहीं लिखवा सकती थी... आज भी यही सब सोचते हुए बेड के सिरहाने पर सर टिकाकर आंखें बंद करके हर्ष के पास बैठी थी, हर्ष सो रहा था रात हो गई थी, बाहर का वातावरण एकदम शांत था, लेकिन शिया के मन में इन सब सवालों ने बहुत हलचल मचा रखी थी। तभी अचानक फोन की घंटी बजी शिया ने देखा राघव का फोन था। इतने दिनों में राघव से मिलना सिर्फ दो तीन बार ही हुआ था बस फोन से बात हो जाती थी। फोन उठाते ही राघव ने हालचाल पूछा, उसके बाद कहा कि कल मेरे बेटे का जन्मदिन है, आपको और हर्ष को जरूर आना है। उसने नया घर बनवाया था, इसलिए नए घर का पता भी बताया, शिया ने आने के लिए हां कह दिया, फोन कट चुका था, लेकिन शिया के मन में बड़ी बेचैनी थी, राघव के साथ बिताया हुआ वो समय उसे याद आ रहा था। अचानक से कितना अकेलापन महसूस होने लगा था उसे, आखिर राघव ने बुलाया था तो जाना तो था ही, जैसे तैसे रात बीती, अगले दिन राघव के बताए गए समय पर शिया राघव के घर पहुंच गई ।                                                   राघव शिया को घर के बाहर ही मिल गया और उन्हें घर के अंदर ले गया, अंदर कोई नहीं था, वहां पर बस ढेर सारे खिलौने रखे थे, हर्ष खेलने लगा फिर शिया ने पूछा तुम्हारी पत्नी और बेटा कहां है, तो राघव ने कहा कि अपने कमरे में है चलो मिलवाता हूं।  कमरे में पहुंच कर शिया ने देखा एक बड़ी सी तस्वीर लगी थी जिसमे हर्ष राघव और शिया थे, शिया ने राघव कि तरफ सवालों भारी नजर से देखा, तो राघव थोड़ा सा मुस्कराया और बोला कल तुम मुझे मार्केट वाले मन्दिर के बाहर दिखी थी, जब तक मै तुम्हारे पास आता तब तक तुम्हारी कार वहां से निकल गई, लेकिन तुम्हारा ये लॉकेट वहां गिर गया,  अगर तुम्हारा ये लॉकेट मुझे नहीं मिलता, और इसमें मैं अपनी तस्वीर नहीं देखता तो कभी जान नहीं पाता कि तुम मुझसे कितना प्यार करती हो। तुमने मुझसे कुछ कहा क्यों नहीं, शिया ने कहा कैसे कहती तुमने एक दिन बताया था कि तुम किसी को पसंद करते हो, तो  राघव ने कहा हां कहा था लेकिन वो तुम्हारे लिए ही था, अगर उस दिन तुम पूछती की कौन है वो, तो मै जरूर बताता लेकिन तुमने उसके बाद कुछ पूछा ही नहीं,  मै तो कितने दिनों से तुम्हारा इंतजार कर रहा था। तुम ही मेरी जिंदगी में पहली और आखिरी लड़की हो।                                           शिया ने पूछा कि तो फिर तुमने उस दिन मुझे जाने से क्यों नहीं रोका ? राघव ने कहा कैसे रोकता शिया... मैंने तुमसे वादा जो किया था कि हर्ष के आने के बाद मै तुमको तलाक दे कर यहां से जाने दूंगा... लेकिन शिया अब में तुमको कहीं नहीं जाने दूंगा शिया कुछ नहीं बोल पाई, बस उसकी आंखों से आंसू निकलते रहे फिर उसने कहा कि लेकिन तुमने कहा था, कि तुम्हारे बेटे का जन्म दिन...राघव ने कहा कि तुम्हे याद नहीं है लेकिन आज के दिन ही हर्ष हमको वापस मिला था इसलिए मेरे लिए तो आज ही उसका का जन्म दिन है। राघव ने हर्ष को गोद में उठाकर कहा कि चलो केक काटते हैं, शिया ने हर्ष से कहा कि हर्ष ये तुम्हारे पापा है तो हर्ष खुशी से राघव के सीने से लग गया। आज शिया की आंखों में खुशी के आंसू थे, आज उसका परिवार पूरा हो गया था। इतने दिनों के संघर्ष के बाद उसके जीवन को भी एक दिशा मिल गई थी, आज सारे जहां की खुशियां उसके पास थी।

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