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शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाण शान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफनीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्मं बिभुम् ।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
बन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ॥१॥
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा ।
भक्ति प्रयच्छ रघुपुन्ड्ग्व निर्भरां में
कामादिदोषरहितं कुरु मानसून च ॥२॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगयम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥
🙏शांत, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप, परमशांति देने वाले, ब्रह्मा शम्भु और शेष जी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्यरूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने जगदीश्वर कि मैं बंदना करता हूं ।। १।।
हे रघुनाथ जी! मै सत्य कहता हूं और फिर आप सब जानते ही है कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है । 🙏 हे रघुकुल श्रेष्ठ ! मुझे अपनी भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए ।। २।।
हे अतुलित बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन के लिए अग्निरूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य , सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्रीरघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमान जी को मै प्रणाम करता हूं 🙏🙏🙏।। ३।।
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